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छत्तीसगढ़ का वन्यजीव धरोहर: डोंगरगढ़-खैरागढ़ में बाघ, तेंदुआ और दुर्लभ प्रजातियों का है बसेरा, संरक्षण से बन सकता है जैव विविधता का केंद्र

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Mar 12, 2025    150812 views     Online Now 494

अमित पांडेय, खैरागढ़-डोंगरगढ़. छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ और खैरागढ़ केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए भी जाने जाते हैं. यहां के जंगलों में अनगिनत दुर्लभ और संरक्षित वन्य प्रजातियों का बसेरा है. यहां पक्षियों की 290 प्रजातियां पायी जाती हैं.

हाल ही में हुए एक विस्तृत अध्ययन ने इस क्षेत्र की वन्यजीव समृद्ध संपदा को उजागर किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो यह क्षेत्र जैव विविधता संरक्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता है. हाल ही में एम्बियंट साइंस नामक वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित एक शोध में यहाँ की अद्भुत जैव विविधता देखने को मिली है.

अध्ययन में कुल 35 स्तनधारी प्रजातियों की पहचान की गई, जिनमें कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियां शामिल हैं. बाघ, तेंदुआ और भारतीय पैंगोलिन जैसे वन्यजीवों की मौजूदगी खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के जंगलों में दर्ज की गई है, जबकि खतरों में शामिल कुछ प्रजातियां जैसे Sloth Bear (भालू) और Four Horned Antelope (चौसिंघा) यहां नियमित रूप से पाए जाते हैं.  अध्ययन के दौरान कई ऐसे रोमांचक क्षण आए जब शोधकर्ताओं ने दुर्लभ जीवों की गतिविधियों को नजदीक से देखा.

इस शोध में प्रकृति शोध एवं संरक्षण वेलफेयर सोसायटी के प्रतीक ठाकुर और डॉ दानेश सिन्हा के साथ छत्तीसगढ़ के मशहूर ऑर्निथोलॉजिस्ट ए एम के भरोस और पक्षीप्रेमी और वर्तमान में सीईओ जिला पंचायत कोंडागांव में पदस्थ अविनाश भोई शामिल रहे.

शोधकर्ताओं ने बताया यहां के जंगलों में बाघों की उपस्थिति के प्रमाण 2020 से आज तक मिल रहे हैं. बाघ के यहां स्थाई निवास के दावे भी किए जा रहे हैं, इसपर गहन अध्ययन की जरूरत है. इस इलाके की वन्यजीव संपदा जितनी अद्भुत है, उतनी ही चुनौतियों से भी घिरी हुई है. जंगलों का कटाव, खेती का बढ़ता दायरा और अवैध शिकार जैसी समस्याएं इन जीवों के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं.

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स्लॉथ बियर,पेंगोलिन (शाल खपरी),हिरण और तेंदुए जैसी प्रजातियों के साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं. ग्रामीणों के बीच कई अंधविश्वास भी प्रचलित हैं, जिसके कारण कई बार वन्यजीवों का शिकार किया जाता है. उदाहरण के लिए, पैंगोलिन की स्केल और तेंदुए के दाँत और नाखूनों की तस्करी बढ़ती जा रही है, जिससे इनकी आबादी खतरे में पड़ गई है.

यहां के जंगल कान्हा नेशनल पार्क, भोरमदेव अभयारण्य और नवेगांव टाइगर रिजर्व से जुड़े हुए हैं. ऐसे में इस विशाल वन क्षेत्र और समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित कर इसे मध्यभारत में चल रहे वन्यजीव संरक्षण कार्य को बल मिल सकता है.

डोंगरगढ़ और खैरागढ़ दोनों पहले ही पर्यटन स्थल के रूप में विकसित और विख्यात हैं. अगर यहां के जंगलों को संरक्षित कर “सामुदायिक संरक्षण रिजर्व” घोषित किया जाए तो पर्यटन का और भी अधिक महत्त्व बढ़ जाएगा. इससे न केवल वन्यजीवों को सुरक्षित आवास मिलेगा, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी संरक्षण में शामिल किया जा सकेगा. स्थानीय प्रशासन और ग्रामीण मिलकर काम करें, तो यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र बन सकता है.

शोधकर्ता प्रतीक ठाकुर ने बताया कि प्रकृति शोध एवं संरक्षण कल्याण समिति, डोंगरगढ़ की टीम ने अब तक 290 प्रजातियों के पक्षी और 35 प्रजातियों के स्तनधारी इन दो जिलों में दर्ज किए हैं. छत्तीसगढ़ के दृष्टिकोण से यह एक समृद्ध जैव विविधता मानी जा सकती है, जो इस क्षेत्र के संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाती है. डोंगरगढ़-खैरागढ़ वन क्षेत्र को एक सामुदायिक संरक्षण (Community-Based Conservation) के साथ ईको-टूरिज्म का केंद्र बनाने की जरूरत है.

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इस दिशा में खैरागढ़ वन विभाग ने छिंदारी/रानी रश्मि देवी जलाशय से पहल की है, जो सराहनीय प्रयास है. उम्मीद है कि यह मॉडल न केवल वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देगा, बल्कि ईको-टूरिज्म के माध्यम से स्थानीय आजीविका के नए अवसर भी सृजित करेगा. यदि इस पहल को खैरागढ़-राजनांदगांव के अन्य वन क्षेत्रों से जोड़ा जाए, तो ये जंगल छत्तीसगढ़ टूरिज्म के प्रमुख हब के रूप में विकसित हो सकते हैं. इससे न केवल जैव विविधता की सुरक्षा होगी, बल्कि पर्यटन को भी एक नई दिशा मिलेगी.

 डोंगरगढ़ और खैरागढ़ की इन हरी-भरी वादियों में अब भी उम्मीद बाकी है. यदि समय रहते ठोस कदम उठाए जाएं, तो यह इलाका आने वाली पीढ़ियों के लिए एक समृद्ध जैव विविधता धरोहर के रूप में सुरक्षित रह सकता है.

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