साल था 2024 और तारीख 10 मई. उस वक्त पूरे देश में लोकसभा चुनाव का संग्राम छिड़ा था. इसी बीच एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए 20 दिन की अंतरिम जमानत मंजूर कर दी. केजरीवाल मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में जेल में बंद थे.
इस घटना के 9 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह की एक और याचिका पहुंची. यह याचिका मुस्तफाबाद से एआईएमआईएम के उम्मीदवार ताहिर हुसैन ने दाखिल की थी. ताहिर दिल्ली दंगे में आरोपी हैं और चुनाव प्रचार के लिए 15 दिन के लिए अंतरिम जमानत मांग रहे थे.
हालांकि, कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत नहीं दी. दो जजों के बीच फैसले को लेकर मतभेद होने की वजह से ताहिर को राहत नहीं मिली है.
सुप्रीम कोर्ट से ताहिर हुसैन की याचिका खारिज होने के बाद सवाल उठ रहा है कि आखिर अरविंद केजरीवाल की तरह उन्हें अंतरिम जमानत क्यों नहीं मिल पाई? वो भी तब, जब सर्वोच्च अदालत में सुनवाई के दौरान कई मौकों पर अरविंद केजरीवाल केस का उदाहरण दिया गया. खुद जस्टिस अमानुल्लाह ने अपने फैसले में अरविंद केजरीवाल केस का जिक्र किया है.
अरविंद केजरीवाल पर सिर्फ एक आरोप थे
मार्च 2024 में प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया था. केजरीवाल पर दिल्ली आबकारी नीति के मामले में साजिश का आरोप था. वहीं ताहिर पर कुल 5 केस दर्ज हैं, जिसमें कई केस गंभीर आरोपों के तहत दर्ज है.
अपने आदेश में जस्टिस पंकज मिथल ने इसका जिक्र भी किया है. जस्टिस मिथल ने अपने आदेश में कहा कि दो एक मामले में अगर हम अंतरिम राहत देते भी हैं, तो इसका कोई फायदा नहीं होगा. जस्टिस मिथल ने कहा कि 2 केस अभी और है, जो गंभीर है.
जस्टिस मिथल का कहना था कि अगर हम इस केस में अंतरिम राहत देते भी हैं, तो याचिकाकर्ता के लिए बाहर निकलना आसान नहीं होगा.
ट्रायल कोर्ट पहले ही हुसैन और अन्य के खिलाफ आईपीसी धारा 147, 148, 153A, 302, 365, 120B, 149, 188 और 153A IPC के तहत आरोप तय कर चुकी है.
ताहिर न पार्टी प्रमुख न ग्राउंड पर सक्रिय
सुनवाई के दौरान ताहिर हुसैन की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि ताहिर पिछले 5 साल से जेल में बंद है. उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल है, लेकिन ट्रायल नहीं चलाया जा रहा है. दो गवाह अभी तक हो पाया है. ऐसे में मुझे 15 दिन की अंतरिम जमानत दी जाए, जिससे मैं अपना चुनाव प्रचार कर सकूं.
सिद्धार्थ अग्रवाल ने इस दौरान अरविंद केजरीवाल केस का भी उदाहरण दिया, जिसका एडिशनल सॉलिसटर जनरल एसवी राजू ने विरोध किया. एएसजी राजू का कहना था कि अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय पार्टी के प्रमुख थे, जबकि ताहिर सिर्फ एक उम्मीदवार है.
राजू के मुताबिक कोर्ट अगर इस तरीके से हर उम्मीदवार को जमानत देने लगी तो जेल में बंद कैदी चुनाव ही लड़ना चाहेंगे. देश में हर वक्त चुनाव चलता रहता है.
फैसला सुनाते वक्त जस्टिस मिथल ने कहा कि ताहिर पिछले 5 साल से जेल में हैं. ग्राउंड पर भी सक्रिय नहीं हैं. ऐसे में चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत का यह आधार नहीं हो सकता है.
ताहिर की याचिका इसलिए भी खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के मुताबिक हिरासत या जेल में बंद कैदी मतदान नहीं कर सकता है. ताहिर अभी जमानत पर नहीं है. अगर हम उसे 15 दिन के लिए अंतरिम जमानत देते हैं तो इसका मतलब होगा- हम उसे वोट करने की इजाजत भी दे रहे हैं.
सुनवाई के दौरान एएसजी राजू ने कहा कि जेल से प्रचार कर भी कई लोग जीत जाते हैं. अरविंद केजरीवाल को प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी गई थी, लेकिन फिर भी उनकी पार्टी दिल्ली में जीत नहीं पाई.
फैसले को लेकर जजों की राय अलग-अलग
अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत का मामला तीन जजों की बेंच में सुना गया था. केजरीवाल को राहत देने को लेकर तीनों जज सहमत थे, लेकिन ताहिर मामले में ऐसा नहीं हुआ है.
ताहिर मामले में जहां सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस पंकज मिथल ने सिरे से अंतरिम जमानत की मांग को खारिज कर दिया है. वहीं जस्टिस अमानुल्लाह ने अंतरिम जमानत मंजूर करने की बात कही है. हाालंकि, राय अलग-अलग होने की वजह से यह मामला अब तीन जजों की बेंच में जाएगा.
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