ब्रिटेन ने भारत में कितनी और किस तरह की लूट की, वो किसी से छिपी नहीं है. इस लूट को लेकर अलग-अलग आंकड़े दुनिया की किताबों और मैग्जींस में दर्ज हैं. लेकिन ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट ने जो इस लूट का आंकड़ा दिया है, वो बेहद चौंकाने वाला है. उस रकम से मौजूदा समय की पांच सबसे बड़ी इकोनॉमी खड़ी हो सकती हैं. जिसमें अमेरिका और चीन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं. अब आप समझ सकते हैं कि उस जमाने में ब्रिटेन ने भारत को किस तरह से और कितने रुपए की लूट की होगी. आइए आपको भी बताते हैं कि ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में किस तरह की जानकारी दी है.
करीब 65 ट्रिलियन डॉलर की महालूट
ऑक्सफैम इंटरनेशनल की फ्रेश रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन ने 1765 से 1900 के बीच यानी 135 बरस के औपनिवेशिक कालखंड के दौरान भारत से 64,820 अरब अमेरिकी डॉलर यानी 64.80 ट्रिलियन डॉलर राशि निकाली. इसमें से 33.80 ट्रिलियन डॉलर देश के सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों के पास गए.
विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक से कुछ घंटे पहले सोमवार को टेकर्स, नॉट मेकर्स शीर्षक वाली यह रिपोर्ट जारी की गई. इसमें कई स्टडीज और रिसर्च पेपर्स का हवाला देते हुए दावा किया गया कि आधुनिक बहुराष्ट्रीय निगम केवल उपनिवेशवाद की देन है.
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ऑक्सफैम ने कहा कि ऐतिहासिक औपनिवेशिक युग के समय व्याप्त असमानता और लूट की विकृतियां, आधुनिक जीवन को आकार दे रही हैं. इसने एक अत्यधिक असमान विश्व का निर्माण किया है, एक ऐसा विश्व जो नस्लवाद पर आधारित विभाजन से त्रस्त है, एक ऐसा विश्व जो ग्लोबल साउथ से क्रमबद्ध रूप से धन का दोहन जारी रखता है, जिसका लाभ मुख्य रूप से ग्लोबल नॉर्थ के सबसे अमीर लोगों को मिलता है.
10 फीसदी को मिले 33.80 ट्रिलियन डॉलर
विभिन्न अध्ययनों और शोध पत्रों को आधार बनाकर ऑक्सफैम ने गणना की कि 1765 और 1900 के बीच ब्रिटेन के सबसे धनी 10 फीसदी लोगों ने केवल भारत से आज के हिसाब से 33,800 अरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति निकाली. ये रकम मौजूदा समय में अमेरिकी कुल जीडीपी के बराबर है. इसमें कहा गया कि लंदन के सतही क्षेत्र को यदि 50 ब्रिटिश पाउंड के नोटों से ढका जाए तो उक्त राशि उन नोटों से चार गुना अधिक मूल्य की है.
रिपोर्ट की अहम बात
ऑक्सफैम ने 1765 से 1900 के बीच 100 से अधिक वर्षों के औपनिवेशिक काल के दौरान ब्रिटेन द्वारा भारत से निकाले गए धन के बारे में कहा कि सबसे अमीर लोगों के अलावा, उपनिवेशवाद का मुख्य लाभार्थी नया उभरता मध्यम वर्ग था. उपनिवेशवाद के जारी प्रभाव को जहरीले पेड़ का फल करार देते हुए ऑक्सफैम ने कहा कि भारत की केवल 0.14 फीसदी मातृभाषाओं को ही शिक्षण माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है और 0.35 फीसदी भाषाओं को ही स्कूलों में पढ़ाया जाता है. ऑक्सफैम ने कहा कि ऐतिहासिक औपनिवेशिक काल के दौरान जाति, धर्म, लिंग, लैंगिकता, भाषा और भूगोल सहित कई अन्य विभाजनों का विस्तार तथा शोषण किया गया. उन्हें ठोस रूप दिया गया और जटिल बनाया गया.
दुनिया की बन जाती 5 सबसे बड़ी इकोनॉमी
खास बात तो ये है ब्रिटेन की इस महालूट जो रकम है, उससे दुनिया की पांच सबसे बड़ी इकोनॉमी एक बार फिर से खड़ी हो सकती है. जिसमें अमेरिका और चीन के साथ जापान, जर्मनी और भारत भी शामिल हैं. इन पांचों की कुल जीडीपी 64 ट्रिलियन डॉलर से भी कम है. आईएमएफ के अनुमान के अनुसार साल 2025 में अमेरिकी कुल जीडीपी 30.33 ट्रिलियन डॉलर, चीन की 19.53 ट्रिलियन डॉलर, जर्मनी की 4.92 ट्रिलियन डॉलर, जापान की 4.40 ट्रिलियन डॉलर और भारत की 4.27 ट्रिलियन डॉलर होगी. इसका मतलब है कि इन पांचों देशों की कुल इकोनॉमी 63.46 ट्रिलियन डॉलर होगी. जबकि भारत से की गई लुट का आंकड़ा इससे ज्यादा है.
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