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Emergency Review : कंगना रनौत की दमदार एक्टिंग जीत लेगी दिल, जानें कैसी है फिल्म ‘इमरजेंसी’

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Jan 17, 2025    1508112 views     Online Now 290
Emergency Review : कंगना रनौत की दमदार एक्टिंग जीत लेगी दिल, जानें कैसी है फिल्म 'इमरजेंसी'

कंगना रनौतImage Credit source: सोशल मीडिया

‘राजनीति में सिर्फ एक बात गलत है और वो है हार जाना’ भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कई दशक पहले ये बात कही थी. लेकिन उनकी ये बात आज भी सच साबित होती है. कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ थिएटर में रिलीज हो चुकी है. कंगना रनौत ने इस फिल्म की कहानी लिखी है और उन्होंने ही इस फिल्म का निर्देशन भी किया है. जब फिल्म का फर्स्ट लुक जारी किया गया था, तब कंगना को इंदिरा गांधी के लुक में देखकर ये तय था कि फिल्म तो देखनी पड़ेगी. साथ ही ये उत्सुकता भी थी कि क्या कंगना रनौत इंदिरा गांधी को विलेन की तरह दिखाएंगी या हीरो की तरह. अब फिल्म देखने के बाद पूरे आत्मविश्वास के साथ मैं कह सकती हूं कि कंगना रनौत ने इस फिल्म के जरिए ऑडियंस को उम्मीद से दोगुना दिया है, कुछ बातें फिक्शनल भी लगती हैं. लेकिन कुल मिलाकर कंगना इस बार एक अच्छी फिल्म लेकर आई हैं.

फिक्शन भी कहानी भी

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इंदिरा गांधी की कहानी सुनते हुए कंगना ने सिनेमैटिक लिबर्टी का भी फायदा उठाया है. अब कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता, फिर चाहें वो हमारे देश की पूर्व प्रधानमंत्री क्यों न हो. फिल्म ‘इमरजेंसी’ में कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी के बचपन से लेकर उनकी मौत तक का सफर बताया है. लेकिन पूरी फिल्म में ज्यादातर समय इंदिरा गांधी को हीरो की तरह दिखाने वाली कंगना उनकी बुआ और देश की फ्रीडम फाइटर विजया लक्ष्मी पंडित को विलेन दिखाती है. इस फिल्म के शुरुआत के एक सीन में दिखाया गया है कि कैसे विजया लक्ष्मी, इंदिरा की मां को कमरे में भेजकर, नौकर को कमरे के दरवाजे को लॉक करने को कह देती हैं. ‘जैसी भद्दी शकल वैसी ही अकल’ कहते हुए वो इंदिरा को बदसूरत तक कह देती है.

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फिल्म में एक तरफ इंदिरा और उनके पिता यानी की देश के पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू के बीच चल रहा विचारों का द्वंद्व दिखाया गया है, तो दूसरी तरफ इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को इस पूरी फिम में एक विलेन के तौर पर पेश किया है. यानी एक तरफ इस कहानी में कंगना इंदिरा गांधी को स्टार बता रही हैं, तो दूसरी तरफ उनके करीबियों को उन्होंने विलेन की तरह पेश किया है और यही वजह है कि हम इस फिल्म को ‘एक फिक्शन स्टोरी’ कह सकते हैं.

अखिरतक बांधे रखने वाला निर्देशन

जो कहानियां हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, जिस विषय पर कई शॉर्ट फिल्म्स, डॉक्युमेंट्रीज बनी हैं, उस विषय पर ढाई घंटे की फिल्म बनाना, जो ऑडियंस को आखिर तक कनेक्ट करके रखे, आसान नहीं है. लेकिन कंगना इसमें सफल हो गई हैं. फिल्म की कहानी लिखते हुए उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि लोग पूरी फिल्म में उनके साथ रहें. लेकिन अचानक एक अच्छे सीन के बीच में प्रधानमंत्री से लेकर विरोधी पार्टी के नेता और भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष का गाना गाना ओवर ड्रामेटिक लगता है, जो टाला जा सकता था. फिल्म की अच्छी कास्टिंग ने भी कंगना रनौत का काम आसान कर दिया है.

दिल जीतने वाली एक्टिंग

कंगना रनौत इस फिल्म में न सिर्फ इंदिरा गांधी की तरह दिखी हैं, लेकिन उनकी बॉडी लैंग्वेज से लेकर उनके एक्सप्रेशन तक इस किरदार के हर पहलू पर उन्होंने काम किया है. इंदिरा जी का हाथी पर बैठकर एक छोटे से गांव में जाना हो, या फिर देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अंतिम विधि का समय हो, उस टाइमलाइन से जुड़ी जो तस्वीरें और वीडियो मौजूद हैं, उनके रिफरेन्स का सही इस्तेमाल करते हुए ठीक उसी तरह का माहौल फिल्म में दिखाया गया है. इंदिरा गांधी के कपड़े और हेयर स्टाइलिंग (4 हेयर कट) भी पूरी तरह से वैसा ही रखा गया है, जैसे असल में उनका था. इसके अलावा जिसने कंगना का प्रोस्थेटिक किया है, उसे पूरे मार्क्स.

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फिल्म में इंदिरा गांधी को ‘गुड़िया’ कहकर पुकारने वाले जयप्रकाश नारायण का किरदार अनुपम खेर ने निभाया है. अब हमारी उम्र से ज्यादा समय से एक्टिंग करने वाले इस कलाकार एक्सप्रेशन और एक्टिंग के बारे में हम क्या ही कहें? लेकिन हमेशा के तरह उन्होंने अपने किरदार में जान डाल दी है.अटल बिहारी वाजपेयी के किरदार में श्रेयस तलपड़े भी अच्छे हैं. जगजीवन राम के किरदार में सतीश कौशिक को देखना बड़ा ही सुखद था. लेकिन विक्की कौशल को ‘सैम’ के रूप में देखने के बाद अब मिलिंद सोमन के सैम मानेकशॉ से कनेक्ट करना मुश्किल लगा. महिमा चौधरी (पुपुल जयकर) का किरदार बड़ा दिलचस्प लगा.

देखे या न देखें

फिल्म में कुछ चीजें खटकती जरूर हैं, जैसे की संजय गांधी के किरदार का कैरेक्टराइजेशन. फिल्म में दिखाया गया है कि संजय गांधी के गलत इन्फ्लुएंस के चलते इंदिरा गांधी जैसा व्यक्तित्व बेटे के मोह में कुछ गलत फैसले ले रहा है. दमदार शुरुआत और शानदार एंडिंग के बीच की टाइमलाइन पर काम किया जा सकता था. एडिटिंग टेबल पर फिल्म थोड़ी और क्रिस्प हो सकती थी. लेकिन ये एक अच्छी फिल्म है.

21 महीने तक देश में ‘इमरजेंसी’ का ऐलान करने वाली देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हेनरी किसिंजर के साथ मीटिंग हो, या फिर बांग्लादेश मामला फिल्म में कई ऐसे सीन हैं, जो इसे रोमांचक बनाते हैं. ‘सारे जहां से अच्छा’ कहते हुए चांद से इंदिरा गांधी के साथ बात करने वाले एस्ट्रोनॉट राकेश शर्मा के सीन की तरह फिल्म में ऐसे कई सीन हैं, जो दिल जीत लेते हैं. लेकिन बांग्लादेश मामले में जो हिंसाचार पर्दे पर दिखाया है, वो अवॉयड किया जा सकता था.

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कंगना रनौत ने ‘इमरजेंसी’ के साथ अच्छी फिल्म बनाने की ईमानदार कोशिश की है. एक अच्छी कहानी के लिए, कलाकारों की शानदार एक्टिंग के लिए और इंदिरा गांधी को जानने के लिए इस फिल्म को थिएटर में जाकर देखा जा सकता है.

फिल्म – इमरजेंसी

डायरेक्टर – कंगना रनौत

स्टार कास्ट – कंगना रनौत, अनुपम खेर, श्रेयस तलपड़े, सतीश कौशिक, महिमा चौधरी

स्टार्स – 3.5

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