सरकारी कर्मचारियों के लिए अच्छी खबर है.1 जनवरी 2026 से लागू होने वाले 8वें केंद्रीय वेतन आयोग की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक खबर के मुताबिक, कर्मचारी संगठनों ने अपनी मांगों की लंबी-चौड़ी सूची सरकार को सौंप दी है, जिन्हें ध्यान में रखने की अपील की गई है. संगठनों की प्रमुख मांग में पुरानी पेंशन योजना की बहाली, कैशलेस इलाज की सुविधा, बच्चों की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्च, और जोखिम वाले काम करने वाले कर्मचारियों के लिए अलग भत्ता और बीमा कवरेज शामिल हैं. इस आयोग की सिफारिशें करीब 45 लाख कर्मचारियों और 68 लाख पेंशनर्स पर असर डालेंगी, जिनमें रक्षा और अर्धसैनिक बलों के लोग भी शामिल हैं.
पुरानी पेंशन की वापसी की मांग तेज
कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग है कि 2004 के बाद भर्ती हुए लोगों को भी पुरानी पेंशन योजना (OPS) का लाभ मिले. अभी उन्हें नई पेंशन योजना (NPS) के तहत पेंशन मिलती है, जो अंशदान पर आधारित है और फायदे कम हैं. कर्मचारी चाहते हैं कि उन्हें भी रिटायरमेंट के बाद तय और सुरक्षित पेंशन मिले, जैसा पहले मिलता था. इसके साथ-साथ यह भी कहा गया है कि हर 5 साल में पेंशन की राशि बढ़ाई जाए और पुराने-नए पेंशनर्स को एक समान लाभ मिले.
इलाज की सुविधा हो पूरी तरह कैशलेस
इलाज को लेकर भी कर्मचारियों ने कुछ ज़रूरी बातें रखी हैं. उनका कहना है कि आज भी कई कर्मचारियों और पेंशनर्स को इलाज के लिए जेब से पैसा देना पड़ता है और बाद में रिफंड का लंबा झंझट झेलना पड़ता है. इसलिए सरकार से मांग की गई है कि पूरी तरह कैशलेस मेडिकल सुविधा लागू की जाए, जिसमें पेंशन पाने वाले रिटायर्ड कर्मचारियों को भी बराबरी से इलाज मिले. खासतौर पर डाक विभाग के रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए व्यवस्था को और बेहतर बनाने की ज़रूरत है.
बच्चों की पढ़ाई में भी मिले मदद
मंहगी होती शिक्षा को देखते हुए कर्मचारी संगठनों ने कहा है कि सरकार बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने में मदद करे. वे चाहते हैं कि सभी कर्मचारियों को बच्चों की पढ़ाई के लिए शिक्षा भत्ता मिले, और अगर बच्चा हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करता है, तो हॉस्टल सब्सिडी भी दी जाए. यह सहायता पोस्ट ग्रेजुएशन स्तर तक मिलनी चाहिए, ताकि बच्चों की उच्च शिक्षा में कोई रुकावट न आए.
खतरनाक काम करने वालों को मिले अलग भत्ता और बीमा
जो कर्मचारी हथियार, केमिकल, एसिड और विस्फोटक जैसी खतरनाक चीज़ों के निर्माण या भंडारण से जुड़े काम करते हैं, उनके लिए जोखिम भत्ता (Risk Allowance) और बीमा सुरक्षा देने की मांग की गई है. रेलवे के कर्मचारियों के लिए भी खास रिस्क और हार्डशिप अलाउंस की मांग उठाई गई है, ताकि जो लोग रोज़ाना जोखिम भरे माहौल में काम करते हैं, उन्हें उनकी मेहनत और जोखिम के हिसाब से मुआवज़ा भी मिले.
MACP योजना में बदलाव की मांग
MACP यानी Modified Assured Career Progression एक ऐसी योजना है जिसके तहत उन कर्मचारियों को आर्थिक फायदा मिलता है, जिन्हें लंबे समय तक प्रमोशन नहीं मिला. अब कर्मचारी चाहते हैं कि इस योजना का दायरा बढ़ाया जाए और इसमें ग्रामीण डाक सेवक, अर्धसैनिक बलों के जवान और सरकार के अधीन चल रहे स्वायत्त संस्थानों के कर्मचारी भी शामिल हों. साथ ही कुछ पुराने और अप्रासंगिक वेतनमानों को खत्म कर, उन्हें नए और व्यावहारिक स्केल में मिलाने की बात भी कही गई है.
खर्च का नया पैमाना तय करने की तैयारी
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि स्टैंडर्ड कंजम्प्शन यूनिट (SCU) को 3 से बढ़ाकर 3.6 किया जाए. ये इकाई बताती है कि एक औसत व्यक्ति की रोज़ की ज़रूरतें कितनी हैं, और इसका इस्तेमाल न्यूनतम वेतन और सरकारी खर्च का आधार तय करने में होता है. अगर ये सुझाव मान लिया गया, तो सरकारी खर्च में इज़ाफा होगा और कर्मचारियों के लिए शुरुआती वेतन भी ज़्यादा तय हो सकता है.
सुझावों पर मंथन करेगी सरकरा
सरकार ने अभी आयोग का औपचारिक गठन नहीं किया है, लेकिन इसके लिए टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) यानी काम का दायरा तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने संसद में बताया कि कर्मचारियों की तरफ से आए सुझावों को दर्ज कर लिया गया है और अब कार्मिक विभाग (DoPT) और व्यय विभाग (Department of Expenditure) इनका विश्लेषण कर कैबिनेट के पास अंतिम मसौदा भेजेंगे.
गौरतलब है कि जब 2016 में सातवां वेतन आयोग लागू हुआ था, तो सरकार पर करीब 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा था. ऐसे में अब सरकार को कर्मचारियों की उम्मीदों और बजट के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा.
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